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आदेश
संदर्भ सं.: आईआरडीएआई/एनएल/ओआरडी/ओएनएस/204/12/2018-19 दिनांकः 20-12-2018
मेसर्स रायल सुंदरम जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड – मोटर दावों के निपटान के मामले में
मेसर्स रायल सुंदरम जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को जारी किये गये कारण बताओ नोटिस दिनांक 26 अप्रैल 2017 के लिए दिये गये उत्तर तथा श्री पी. जे. जोसेफ, सदस्य (गैर-जीवन), भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (इसमें इसके बाद आईआरडीएआई/ प्राधिकरण के रूप में उल्लिखित) की अध्यक्षता में 3 जुलाई 2017 को प्राधिकरण के कार्यालय, तीसरी मंजिल, परिश्रम भवनम, बशीर बाग, हैदराबाद में आयोजित वैयक्तिक सुनवाई के दौरान किये गये उनके प्रस्तुतीकरणों के आधार पर निम्नानुसार वक्तव्य दिया जाता हैः
- पृष्ठभूमि
मोटर वाहन कुल हानि / चोरी के दावों के मामले में बीमित घोषित मूल्य (इसमें इसके बाद आईडीवी के रूप में उल्लिखित) की तुलना में कम राशियों के लिए निपटान करनेवाले साधारण बीमाकर्ताओं के संबंध में कुछ शिकायतें प्राप्त होने पर प्राधिकरण ने साधारण बीमाकर्ताओं से मोटर दावों से संबंधित डेटा मँगाया था।
रायल सुंदरम जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (इसमें इसके बाद बीमाकर्ता / कंपनी के रूप में उल्लिखित) से प्राप्त डेटा का विश्लेषण करने पर प्राधिकरण ने मोटर (निजी क्षति) कुल हानि / चोरी संबंधी दावों के मामलों के संबंध में 17 से 19 अक्तूबर 2012 तक बीमाकर्ता का संकेन्द्रित प्रत्यक्ष (आनसाइट) निरीक्षण संचालित किया था। इस निरीक्षण में वित्तीय वर्ष 2009-10 और 2010-11 के दौरान बीमाकर्ता द्वारा किये गये मोटर दावों के निपटान को शामिल किया गया।
प्राधिकरण ने पत्र दिनांक 28 जून 2016 के द्वारा बीमाकर्ता को उक्त निरीक्षण के निष्कर्ष सूचित किये। दिनांक 12 अगस्त 2016 के अपने पत्र के अनुसार बीमाकर्ता द्वारा किये गये प्रस्तुतीकरणों की जाँच करने के बाद प्राधिकरण ने एक “कारण बताओ नोटिस” दिनांक 26 अप्रैल 2017 जारी किया जिसका उत्तर बीमाकर्ता द्वारा उनके पत्र दिनांक 15 मई 2017 के अनुसार दिया गया। उस पत्र में किये गये अनुरोध के अनुसार बीमाकर्ता को एक वैयक्तिक सुनवाई का अवसर 3 जुलाई 2017 को प्रदान किया गया। बीमाकर्ता की ओर से श्री एस. तिरुनावुक्करसु, वरिष्ठ वाइस प्रेसिडेंट, प्रधान (मोटर दावे), श्री एस. आर. बालचंदर, कंपनी सचिव व मुख्य अनुपालन अधिकारी उक्त सुनवाई में उपस्थित थे। प्राधिकरण की ओर से श्री पी. जे. जोसेफ, सदस्य (गैर-जीवन), श्रीमती यज्ञप्रिया भरत, मुख्य महाप्रबंधक (गैर-जीवन), श्री के. महीपाल रेड्डी, उप महाप्रबंधक (गैर-जीवन) और श्री पी. नरसिंहा रेड्डी, विशेष कार्य अधिकारी उक्त वैयक्तिक सुनवाई में उपस्थित थे।
- आरोप
आरोप सं. 1:
कंपनी ने मोटर दावों का निपटान करते समय अखिल भारतीय मोटर प्रशुल्क (टैरिफ), 2002 के सामान्य विनियम 8 के उपबंधों का उल्लंघन किया है, जिसका पाठ निम्नानुसार हैः
“टीएल/टीसीएल दावा निपटान के प्रयोजन के लिए, यह आईडीवी प्रश्नगत पालिसी अवधि
के प्रचलन के दौरान परिवर्तित नहीं होगा।”
“कुल हानि (टीएल) / प्रलक्षित कुल हानि (सीटीएल) दावों के प्रयोजन के लिए इस आईडीवी
को आगे किसी और मूल्यह्रास के बिना पालिसी अवधि के दौरान बाजार मूल्य के रूप में
माना जाएगा।”
आरोप सं. 2:
बीमाकर्ता ने समय-समय पर प्राधिकरण द्वारा जारी किये गये फाइल एण्ड यूज़ दिशानिर्देशों / परिपत्रों का उल्लंघन किया है जिनके द्वारा साधारण बीमाकर्ताओं को सूचित किया गया था कि वे अगले आदेशों तक बीमा कवरों के पूर्व के प्रशुल्क वर्गों के कवरेज, शर्तों, शब्दावली/ वाक्यरचना, वारंटियों और पृष्ठांकनों का प्रयोग करना जारी रखें।
- परिपत्र संदर्भः सं. 021/आईआरडीए/एफएण्डयू/सितंबर-06 दिनांक 28-09-2006
- परिपत्र संदर्भः सं. 048/आईआरडीए/डी-टैरिफ/दिसंबर-07 दिनांक 18-12-2007
- परिपत्र संदर्भः सं. 066/आईआरडीए/एफएण्डयू/मार्च-08 दिनांक 26-03-2008
- परिपत्र संदर्भः सं. 19/आईआरडीए/एनएल/एफएण्डयू/अक्तूबर-08 दिनांक 6 नवंबर 2008
- परिपत्र संदर्भः सं. आईआरडीए/एनएल/सीआईआर/एफएण्डयू/073/11/2009 दिनांक 16-11-2009
- परिपत्र संदर्भः सं. आईआरडीए/एनएल/सीआईआर/एफएण्डयू/003/01/2011 दिनांक 06-01-2011
- बीमाकर्ता द्वारा प्रस्तुतीकरण
बीमाकर्ता द्वारा (क) निरीक्षण के निष्कर्षों के लिए उत्तर, (ख) कारण बताओ नोटिस के लिए उत्तर, (ग) वैयक्तिक सुनवाई और (घ) वैयक्तिक सुनवाई के बाद पत्रादि के द्वारा किये गये प्रस्तुतीकरणों का सारांश निम्नानुसार हैः
- कुल हानि – चोरी संबंधी दावों का निपटान बीमाकृत के साथ चर्चा के बाद किया गया तथा यह उनके सहमति पत्र के द्वारा समर्थित है।
- जब भी दस्तावेजों में कोई कमी रही है (जैसे चाबी खो गई है / आरसी बुक खो गई है), तब कंपनी अतिरिक्त व्यय करने के लिए बाध्य हुई है।
- सूचना देने में विलंब के कारण चोरी किये गये वाहन का पता लगाने के लिए कंपनी के प्रयासों को कम करना पड़ा है।
- निपटान मूल्य जो आईडीवी से कम हो सकता है, की गणना करने के लिए कारण सहमति पत्र प्राप्त करने से पहले दावेदार से साझा किया गया है तथा सहमति पत्र में दोनों आईडीवी और निपटान मूल्य निर्दिष्ट किये गये हैं। आगे यह स्पष्ट किया गया कि इन दावों को “गैर-मानक निपटान” के रूप में माना गया।
(ख) 1. हम अपने (उपर्युक्त) उत्तर को दोहराते हैं। इसके अलावा, हम यह पुष्टि करते हैं कि जो दृष्टिकोण अपनाया गया है वह एक `ग्राहक-केन्द्रित‘ दृष्टिकोण है तथा पालिसीधारक की इच्छा इस प्रकार किये गये निर्णय के लिए प्रमुख कारण है।
2. हमारा दर्शन सदैव विषय पर ग्राहक के परिदृश्य से विचार करना रहा है तथा अनुभव पर आधारित नियम लागू करते हुए अंतिम रूप के आधार पर किसी दावे को (पूर्णतः अथवा अंशतः) अस्वीकार करना कभी नहीं रहा है।
3. हम पुष्टि करते हैं कि दावों के संबंध में किया गया निपटान प्रशुल्क (टैरिफ), दिशानिर्देशों तथा दावों के संबंध में पुराने जमाने से बीमा कंपनियों द्वारा अनुसरण किये जा रहे सामान्य दृष्टिकोण के अनुरूप है।
(ग) 1. सभी मामलों (कुल हानि / प्रलक्षित कुल हानि) में पालिसीधारकों को एक पारदर्शी तरीके से स्पष्ट किया गया है। कुछ मामलों में ग्राहक मरम्मत करवाने के लिए इच्छुक नहीं थे। ऐसे मामलों में हमने दावेदारों को समझाया और उनकी सहमति ली। यह एक लाभालाभ (विन-विन) डस्थिति रही है।
2. बाजार के पास एकसमान आईडीवी नहीं है तथा प्रत्येक बीमाकर्ता ने अपने स्वयं के आईडीवी को अपनाया है। चुनौतियाँ लगातार बनी हुई हैं। सभी नवीकृत (रोल ओवर) पालिसियों में कंपनी को पिछले बीमाकर्ता द्वारा लिये गये आईडीवी से आगे बढ़ना पड़ता है। आईडीवी संबंधी सूचना और उसमें निहित विभिन्नताएँ दावे के समय सामने आती हैं। वाहन के माडलों में विभिन्नताओं के कारण बाजार मूल्य पर मामला-दर-मामला प्रभाव रहता है।
3. दावेदार से सहमति पत्र प्राप्त करना एक बाजार-प्रथा के रूप में अपनाया गया है। यह बातचीत से तय किया गया वक्तव्य है जिसने पारदर्शिता को सुनिश्चित किया है। हम सहमत हैं कि आईडीवी अलंघनीय है, परंतु हमने चर्चाओं के बाद ग्राहकों के लिए सर्वोत्तम विकल्पों का अनुसरण किया है।
4. दावेदारों ने हमारे समक्ष कोई शिकायत नहीं उठाई है। हमारी कंपनी के पास दावों की सबसे कम अस्वीकृति है। हमारा दृष्टिकोण ग्राहक-केन्द्रित है। हमने अत्यंत पारदर्शी पद्धति से कार्य किया है तथा हमारे आशय दावेदारों के लिए `लाभकारी‘ रहे हैं।
5. जहाँ तक चोरी के मामलों का संबंध है, कंपनी को आरसी / वाहन संबंधी अन्य दस्तावेजों के गुम होने की स्थिति में अदालतों / पुलिस थानों में भारी खर्च करना पड़ता है। इस स्थिति के होते हुए, इन दावों को सामान्य दावों के रूप में नहीं माना जा सकता तथा यही बात दावेदारों को स्पष्ट की गई है।
6. आईडीवी को नोट करने के लिए कोई औपचारिक मानक परिचालन प्रक्रिया नहीं है। यह बातचीत से तय किया गया समझौता है। यह केवल एक लाभालाभ (विन-विन) स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए है।
7. वर्तमान में ऐसे सभी मामलों में निपटान मूल्य का अनुसरण नहीं किया जा रहा है। आईडीवी के संबंध में अनुमान एवं विभिन्नताओं और उतार-चढाव के बीच चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
हम पुष्टि करते हैं कि सभी मानक प्रलक्षित कुल हानि (सीटीएल), कुल हानि (टीएल) और चोरी (कुल हानि) दावों का निपटान बीमित राशि को आधार मानते हुए आईडीवी पर और पालिसी की शर्तों के अनुसार किया जाएगा।
IV. मुद्दों की जाँच
- पूर्व के प्रशुल्क (टैरिफ) के उपबंध बीमाकर्ता को टीएल/ सीटीएल दावों के संबंध में आईडीवी से किसी भी राशि की कटौती मनमाने ढंग से करने के लिए हकदार नहीं बनाते। यद्यपि बीमाकर्ता ने कहा है कि निपटान मूल्य की गणना करने के लिए, जो आईडीवी से कम हो सकती है, कारण का साझा सहमति पत्र प्राप्त करने से पहले दावेदार के साथ किया गया है, तथापि कुछ मामलों में पालिसीधारकों को स्पष्ट करने का कोई अभिलेख लिखित में नहीं है। मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ कि ऐसे कारणों से जो अभिलेख में उपलब्ध नहीं हैं, आईडीवी को कम करने के लिए ऐसी बातचीत और चर्चा की विधिमान्यता को ताक पर रखते हुए केवल दावेदारों से एक सहमति पत्र प्राप्त करने से यह निर्दिष्ट होगा कि आईडीवी पारस्परिक तौर पर बातचीत से तय किया गया है और इस संबंध में चर्चा की गई है।
- यह निर्विवाद है कि यदि पालिसीधारक ने किसी महत्वपूर्ण शर्त को भंग किया है, अथवा वह अंशदायी उपेक्षा करने का दोषी है, तो वह ऐसे प्रत्येक भंग अथवा अंशदायी उपेक्षा की गंभीरता के आधार पर पूरे दावे के लिए हकदार नहीं हो सकता। स्वतः कमी करना गलत नहीं होगा, यदि वह विधिमान्य कारणों से हो जो पालिसी जारी करते समय पालिसीधारक को विधिवत् सूचित किया गया हो। यदि कटौती ऊपर उल्लिखित रूप में विधिमान्य कारणों से की गई है, तो ऐसी कटौतियाँ आईडीवी (जोकि बीमित राशि है) की कटौती के रूप में नहीं मानी जा सकतीं। केवल इस कारण से कि एक राशि बीमित है, इसका अर्थ यह नहीं होता कि पालिसीधारक की अंशदायी उपेक्षा अथवा महत्वपूर्ण शर्तों के भंग का विचार किये बिना सभी परिस्थितियों के अंतर्गत बीमित संपूर्ण राशि का भुगतान अवश्य किया जाना चाहिए। तथापि, नैसर्गिक न्याय का तकाजा होगा कि दावेदार को की गई कटौतियों के लिए तर्काधार और कारण की सूचना अवश्य दी जाए। निरीक्षण अभिलेखों में उल्लिखित मामलों में मैं यह जाँच करने के लिए अग्रसर हो रहा हूँ कि क्या उपर्युक्त सिद्धांत का पालन किया गया है अथवा नहीं।
- जाँच के लिए नमूना मामले लिये गये हैं (विवरण दावा अभिलेखों के अनुसार)
दावा सं. |
घटाई गई राशि % में (देय दावे की तुलना में) |
दावा अभिलेखों से टिप्पणियाँ |
नमूना 1 |
9.8% |
शून्य |
नमूना 2 |
5.3% |
शून्य |
नमूना 3 |
30.1% |
- दावे की सूचना देने में विलंब - बीमित वाहन की सुरक्षा के लिए उचित कदम नहीं उठाये गये |
नमूना 4 |
5.2% |
मूल आर.सी. और दूसरी चाबी नहीं मिल रही हैं |
नमूना 5 |
15.0% |
शून्य |
नमूना 6 |
25.0% |
सूचना देने में विलंब |
नमूना 7 |
9.6% |
बीमित वाहन के साथ मूल आर.सी. की चोरी हो गई |
नमूना 8 |
30.1% |
बीमित वाहन की सुरक्षा के लिए उचित कदम नहीँ उठाये गये |
नमूना 9 |
10.4% |
बीमित वाहन ले जाया गया और अन्य चाबी नहीं मिल रही है |
नमूना 10 |
9.6% |
मूल आर.सी. बीमित वाहन के साथ चुराई गई - आईडीवी में विभिन्नता – अतः दावे के संबंध में बातचीत की गई |
नमूना 11 |
15.8% |
आईडीवी के संबंध में बातचीत की गई |
नमूना 12 |
25.2% |
शून्य |
नमूना 13 |
25.9% |
आईडीवी के संबंध में बातचीत की गई |
नमूना 14 |
21.1% |
शून्य |
नमूना 15 |
23.1% |
आईडीवी के संबध में बातचीत की गई |
उपर्युक्त सभी नमूनों में पालिसी की कटोती-योग्य राशियाँ लागू की गई हैं।
मामलों के उपर्युक्त नमूने निर्दिष्ट करते हैं कि बीमाकर्ता द्वारा अनुसरण की गई दावा निपटान प्रक्रिया कुछ मामलों में एक `लाभालाभ‘ (विन-विन) स्थिति नहीं हो सकती (जैसा कि उक्त प्रस्तुतीकरणों में बीमाकर्ता द्वारा घोषित किया गया है), विशेष रूप से ग्राहक के परिप्रेक्ष्य से। कुछ नमूना मामलों के दावा अभिलेखों से यह पाया गया है कि दावेदार अपने सहमति पत्र में वाहन का मूल्य चोरी की तारीख को आईडीवी से कम राशि के रूप में घोषित करता है। उक्त `सहमति पत्र’ में मानकीकृत शब्दावली/वाक्यरचना के अंतर्गत `निपटान मूल्य’ की गणना करने के लिए कोई विशिष्ट कारण निहित नहीं है जो आईडीवी से कम हो। बीमाकर्ता ने स्वीकार किया है कि उपर्युक्त `निपटान मूल्य‘ की गणना करने में कोई मानक परिचालन प्रक्रिया (एसओपी) नहीं थी। उक्त `निपटान मूल्य‘ अपने आप में जीआर 8 के उपबंधों के विपरीत है। इस स्थिति के होते हुए, सहमति पत्र बीमाकर्ता के रुख का समर्थन नहीं करता कि उपर्युक्त मामलों में `आत्यंतिक पारदर्शिता‘ के साथ कार्य किया गया है।
- बीमाकर्ता ने दावा निपटान में कटौती के लिए कथित रूप से दस्तावेजों की कमी / पालिसीधारक द्वारा पालिसी शर्तों का पालन न करना / बाजार में एकसमान आईडीवी का न होना / आईडीवी में विभिन्नताएँ, आदि को कारण के रूप में बताया है। तथापि, दावे का प्रसंस्करण करते समय दावा नोट में इस आशय के केवल कुछ ही टिप्पण हैं। यह मानते हुए भी कि आईडीवी से कम मूल्य के लिए दावा निपटान में गुण है, कटौती के लिए कारण पालिसीधारक को स्पष्ट रूप से दर्शाये जाने चाहिए थे (जैसा कि आईआरडीए (पालिसीधारकों के हितों का संरक्षण) विनियम, 2002 के विनियम 9(5) के उपबंधों के अंतर्गत अपेक्षित है)।
V. निष्कर्ष
आईएमटी 2002 का जीआर 8 (जैसा कि आरोप 1 में वर्णित है) पालिसी अवधि के प्रचलन के दौरान आईडीवी के व्यवहार से संबंधित है। आरोप 2 में उल्लिखित परिपत्र पूर्व के प्रशुल्क (टैरिफ) के विभिन्न उपबंधों को (जीआर 8 सहित) दोहराते हैं।
उपर्युक्त तथ्यों का विश्लेषण दर्शाता है कि संबंधित उपबंधों (अखिल भारतीय मोटर प्रशुल्क, 2002 के सामान्य विनियम 8) एवं ऊपर आरोप सं. 2 के अंतर्गत निर्दिष्ट संबधित परिपत्रों का उपबंधों का उल्लंघन दावों से की गई कटौतियों के संबंध में अपारदर्शी होने की सीमा तक किया गया है। बीमाकर्ता ने दावा किया है कि बीमित व्यक्तियों से कुछ अनुपालन न किये जाने की स्थिति पाई गई है। तथापि, यह बीमाकर्ता के लिए बीमित के साथ उद्दिष्ट चर्चाओं के आधार पर दावों से राशियों की कटौती करने के लिए और `बातचीत से तय राशियों की गणना करने के लिए‘ कोई आधार प्रदान नहीं करता। वास्तव में यह देखा गया है कि इन तथाकथित चर्चाओं के कार्यसंपादन में पारदर्शिता का अभाव रहा है क्योंकि की गई कटौती के लिए कोई कारण/ विवरण बीमित को सामान्य तौर पर नहीं दिया गया है। इस संबंध में कोई पारदर्शिता नहीं है जिससे कोई गैर-मानक दावा बन सकता है तथा यह प्रतीत होता है कि विभिन्न मामलों में आईडीवी से राशियों की कटौती मनमाने ढंग से की गई है। तथापि, जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, उक्त मामले दावेदारों के उदाहरण प्रतिबिंबित करते हैं कि जहाँ दावों के लिए निर्धारित प्रक्रियाओं के पालन के संबंध में किसी प्रकार की कमी पाई गई है।
VI. निर्णय
उपर्युक्त सभी कारकों पर विचार करने के बाद मेरी राय है कि कुल हानि / प्रलक्षित कुल हानि के दावों से संबंधित आरोप 1 और 2 सिद्ध हुए हैं तथा ऊपर दिये गये नमूने इसके लिए प्रमाण हैं। इसी समय, दावेदारों के द्वारा अनुपालन में कुछ कमियाँ भी पाई गई हैं। इन्हें ध्यान में रखते हुए तथा बीमा अधिनियम, 1938 (समय-समय पर यथासंशोधित) की धारा 102(बी) के उपबंधों के अनुसार प्राधिकरण में निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए मैं इसके द्वारा निष्कर्ष पर पहुँचता हूँ कि उक्त बीमाकर्ता पर 5 लाख रुपये की राशि का अर्थ-दंड लगाया जाए।
5,00,000 रुपये (केवल पाँच लाख रुपये) का अर्थ-दंड बीमाकर्ता द्वारा इस आदेश की प्राप्ति की तारीख से 15 दिन की अवधि के अंदर शेयरधारकों के खाते में नामे डालकर एनईएफटी / आरटीजीएस के माध्यम से (जिसका विवरण अलग से सूचित किया जाएगा) विप्रेषित किया जाएगा। बीमाकर्ता द्वारा विप्रेषण की सूचना श्रीमती यज्ञप्रिया भरत, मुख्य महाप्रबंधक (गैर-जीवन), आईआरडीएआई, सर्वे सं. 115/1, फाइनैंशियल डिस्ट्रिक्ट, नानकरामगूडा, हैदराबाद 500032 को दी जाए।
यदि बीमाकर्ता इस आदेश में निहित उपर्युक्त निर्णय से असंतुष्ट है, तो बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 110 के अनुसार प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (एसएटी) को एक अपील प्रस्तुत की जा सकती है।
(पी. जे. जोसेफ)
सदस्य (गैर-जीवन)
स्थानः हैदराबाद
दिनांकः 19.12.2018