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संदर्भः सं.: आईआरडीएआई/एनएल/ओआरडी/ओएनएस/205/12/2018 दिनांकः 20-12-2018
मेसर्स इफ़्को टोकियो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लि. के मामले में
मेसर्स इफ़्को टोकियो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लि. को जारी किये गये कारण बताओ नोटिस दिनांक 1 अगस्त 2017 के लिए उत्तर तथा भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण, तीसरी मंजिल, परिश्रम भवनम्, बशीरबाग, हैदराबाद के कार्यालय में 6 अक्तूबर 2017 को श्री पी. एस. जोसेफ, सदस्य (गैर-जीवन), भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) की अध्यक्षता में आयोजित वैयक्तिक सुनवाई (वीडियो कान्फ़रेन्स के माध्यम से) के दौरान किये गये उनके प्रस्तुतीकरणों के आधार पर निम्नलिखित वक्तव्य दिये जा रहे हैं:
- पृष्ठभूमि
मोटर वाहन कुल हानि / चोरी के दावों के मामले में बीमित घोषित मूल्य (इसमें इसके बाद आईडीवी के रूप में उल्लिखित) की तुलना में कम राशियों के लिए निपटान करनेवाले साधारण बीमाकर्ताओं से संबंधित कुछ शिकायतें प्राप्त होने पर प्राधिकरण ने साधारण बीमाकर्ताओं से मोटर दावों से संबंधित डेटा मँगाया था।
इफ़्को टोकियो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (इसमें इसके बाद बीमाकर्ता / कंपनी के रूप में उल्लिखित) से प्राप्त डेटा का विश्लेषण करने के बाद प्राधिकरण ने मोटर (निजी क्षति) कुल हानि/ चोरी के दावों के मामलों के संबंध में 15 से 17 अक्तूबर 2012 तक बीमाकर्ता का संकेन्द्रित प्रत्यक्ष (आनसाइट) निरीक्षण संचालित किया था। इस निरीक्षण में वित्तीय वर्ष 2009-10 और 2010-11 के दौरान बीमाकर्ता द्वारा मोटर दावों के निपटान को सम्मिलित किया गया।
प्राधिकरण ने निरीक्षण के निष्कर्ष बीमाकर्ता को पत्र दिनांक 28 जून 2016 के द्वारा सूचित किये। बीमाकर्ता द्वारा अपने पत्र दिनांक 18 जुलाई 2016 के पत्र के अनुसार किये गये प्रस्तुतीकरणों की जाँच करने के बाद प्राधिकरण ने एक `कारण बताओ नोटिस’ दिनांक 1 अगस्त 2017 जारी किया जिसका उत्तर बीमाकर्ता द्वारा अपने पत्र दिनांक 14 अगस्त 2017 के अनुसार दिया गया। उस पत्र में किये गये अनुरोध के अनुसार बीमाकर्ता को वीडियो कान्फ़रेंस के माध्यम से 6 अक्तूबर 2017 को एक वैयक्तिक सुनवाई का अवसर दिया गया। श्री वरेन्द्र सिन्हा, प्रबंध निदेशक व मुख्य कार्यकारी अधिकारी, श्री आर. कण्णन, कार्यकारी निदेशक बीमाकर्ता की ओर से उक्त सुनवाई (वीजियो कान्फ़रेंस के माध्यम से) में उपस्थित थे। प्राधिकरण की ओर से श्री पी. जे. जोसेफ, सदस्य (गैर-जीवन), श्रीमती यज्ञप्रिया भरत, मुख्य महाप्रबंधक (गैर-जीवन), श्री के. महीपाल रेड्डी, उप महाप्रबंधक (गैर-जीवन) और श्री पी. शंकर श्रीनिवास, विशेष कार्य अधिकारी उपस्थित थे।
- आरोप
आरोप सं. 1:
कंपनी ने मोटर दावों का निपटान करते समय अखिल भारतीय मोटर प्रशुल्क (टैरिफ), 2002 के सामान्य विनियम 8 के उपबंधों का उल्लंघन किया है, जिसका पाठ निम्नानुसार हैः
“टीएल / सीटीएल दावा निपटान के प्रयोजन के लिए यह आईडीवी प्रश्नगत पालिसी अवधि के प्रचलन के दौरान परिवर्तित नहीं होगा।”
“उक्त आईडीवी को कुल हानि (टीएल) / प्रलक्षित कुल हानि (सीटीएल) दावों के प्रयोजन के लिए आगे किसी अतिरिक्त मूल्यह्रास के बिना समूची पालिसी अवधि के दौरान `बाजार मूल्य ‘ के रूप में माना जाएगा।”
आरोप सं. 2
बीमाकर्ता ने समय-समय पर प्राधिकरण द्वारा साधारण बीमाकर्ताओं को यह सूचित करते हुए जारी किये गये फाइल एण्ड यूज़ दिशानिर्देशों / परिपत्रों का उल्लंघन किया है कि वे अगले आदेशों तक बीमा कवरों के वर्गों के पूर्व के प्रशुल्क (टैरिफ) के कवरेज, शर्तों, शब्दावली/ वाक्यरचना, वारंटियों, खंडों और पृष्ठांकनों का प्रयोग करना जारी रखेंगे।
- परिपत्र संदर्भ सं. 021/आईआरडीए/एफएण्डयू/सितंबर-06 दिनांक 28-09-2006
- परिपत्र संदर्भ सं. 048/आईआरडीए/डी-टैरिफ/दिसंबर-07 दिनांक 18-12-2007
- परिपत्र संदर्भ सं. 066/आईआरडीए/एफएण्डयू/मार्च-08 दिनांक 26-03-2008
- परिपत्र संदर्भ सं. 19/आईआरडीए/एनएल/एफएण्डयू/अक्तूबर-08 दिनांक 6 नवंबर 2008
- परिपत्र संदर्भ सं. आईआरडीए/एनएल/सीआईआर/एफएण्डयू/073/11/2009 दिनांक 16-11-2009
- परिपत्र संदर्भ सं. आईआरडीए/एनएल/सीआईआर/एफएण्डयू/003/01/2011 दिनांक 06-01-2011
- बीमाकर्ता द्वारा प्रस्तुतीकरण
बीमाकर्ता द्वारा (क) निरीक्षण के निष्कर्षों, (ख) कारण बताओ नोटिस के लिए उत्तर तथा (ग) वैयक्तिक सुनवाई में किये गये प्रस्तुतीकरणों का सारांश निम्नानुसार हैः
चूँकि बीमा दो पक्षकारों के बीच एक संविदा है, अतः दोनों पक्षकार संविदा की शर्तों के द्वारा आबद्ध हैं। दावा निपटान प्रक्रिया के दौरान बीमाकर्ता सत्यापन करता है कि क्या पालिसी संविदा में उल्लिखित रूप में सभी शर्तों का पालन किया गया है अथवा नहीं। पालिसी शर्त का कोई उल्लंघन होने की स्थिति में दावे में कटौती के रूप में उपयुक्त अर्थ-दंड लगाया जाता है।
2. पालिसी दस्तावेज में सामान्य तौर पर सभी कटौती-योग्य राशियाँ निहित होती हैं। कुछ दस्तावेजों में कुछ कमियाँ हो सकती हैं, क्योंकि उस समय मोटर व्यवसाय का लेनदेन करने में कवर नोट प्रयोग में थे तथा कवर नोट अधूरे रहे होंगे अथवा जब कवर नोटों को पालिसी दस्तावेज के रूप में परिवर्तित किया गया तब त्रुटियाँ रह गई होंगी। भारतीय मोटर प्रशुल्क के जीआर 3 के अनुसार बीमाकर्ता मामला दल मामला आधार पर कुछ आरोपित आधिक्य (इंपोज्ड एक्सेस) लगा सकता है।
3. हम मूल्यह्रास के शीर्ष के अंतर्गत आईडीवी की कटौती की प्रथा को कभी प्रोत्साहित नहीं
करते। तथापि, कुछ मामलों में यह असावधानीवश घटित हो गई होगी, जिसके विषय में हमारे
स्तर पर सुधार किया जाएगा।
4.कभी कभी उन्मोचन (डिस्चार्ज) वाउचर रिक्त अर्थात् दावे का कोई विवरण भरे बिना लिये जाते हैं तथा संबंधित विवरण भरने के लिए बीमित को पुनः बुलाना कठिन हो जाता है क्योंकि कुछ बीमित व्यक्ति दूरवर्ती स्थानों पर रहते हैं।
- बीमाकर्ताओं द्वारा देय निवल राशि के संबंध में बीमित के करार की पुष्टि के रूप में उनसे (नकदी हानि निपटान की स्थिति में) नोटरीकृत सहमति प्राप्त की जाती है जिससे मात्रा के संबंध में भविष्य में किसी विवाद से बचा जा सके। तथापि, हम इस बात की संभावना का पता लगाएँगे कि सहमति पत्र हम अपने खर्च पर प्राप्त करने की व्यवस्था करें अथवा इस प्रथा को समाप्त किया जाए।
(ख) 1. एक प्रथा के तौर पर चोरी दावों का निपटान लागू करने योग्य आधिक्य (एक्सेस) के बाद किया जाता है। तथापि, कुछ मामलों में जहाँ ग्राहक ने पर्याप्त पूर्व सावधानी नहीं बरती हो अथवा उचित समय के अंदर पुलिस प्राधिकारियों को सूचित नहीं किया हो अथवा आईडीवी के रूप में बाजार मूल्य से अधिक राशि की घोषणा की हो, वहाँ हमने प्राथमिक रूप से प्रशुल्क (टैरिफ) के उपबंधों के अधीन दावों का निपटान किया है, जहाँ बीमाकर्ता के लिए यह अनुमति है कि वह बीमित वाहन या उसके भाग और/या सहायक उपकरणों की मरम्मत कराए, पुनःस्थापित (रीइन्स्टेट) करे अथवा प्रतिस्थापित (रीप्लेस) करे अथवा हानि या क्षति की राशि का नकद भुगतान करे।
2. हम अपने अन्वेषकों (इन्वेस्टिगेटर्स) को कटौती के प्रयोजन के लिए दावा राशि के संबंध में बातचीत/ समझौता करने के लिए सूचित नहीं करते।
3. किसी भी दावे का निपटान करने से पहले बीमित से सहमति प्राप्त की जाती है। सहमति पत्र का उद्देश्य दावा राशि कम करना नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि पालिसी शर्तों के अनुसार निपटान से बीमित संतुष्ट है।
4.दावों पर कार्रवाई लागू करने योग्य आधिक्य (एक्सेस) को घटाकर आईडीवी के आधार पर की जाती है, जब तक कि बीमित की ओर से लापरवाही / उच्चतर आईडीवी की घोषणा को लेकर कारण न हों।
5.कुल मिलाकर हम भारतीय मोटर प्रशुल्क (टैरिफ), 2002 के सामान्य नियमों (जीआर 8) का पालन करते हैं और टीएल / सीटीएल दावों का निपटान आईडीवी आधार पर करते हैं। तथापि, ऐसे विरल मामले हो सकते हैं, जहाँ अंतिम रूप से निपटाई गई राशियाँ ऊपर उल्लिखित कारणों से भिन्न हों।
- हम आश्वस्त करते हैं कि समय-समय पर विनियमनकर्ता द्वारा जारी किये गये दिशानिर्देशों का हमारे द्वारा सावधानीपूर्वक पालन किया जाता है। उक्त निरीक्षण के दौरान पाई गई कोई चूक असावधानीवश घटित हुई होगी, जिसके लिए खेद है और कृपया इसकी अनदेखी की जाए। उपर्युक्त दिशानिर्देशों का भविष्य में पूर्णतः और अक्षरशः अनुपालन किया जाएगा।
(ग) 1. कुछ चूकें अवश्य हुई थीं, परंतु निपटाये गये ऐसे दावों का प्रतिशत निपटाये गये चोरी संबंधी दावों की संख्या की तुलना में बहुत कम है।
2. आईडीवी में कटौती उन मामलों में की गई जहाँ आईडीवी को उच्चतर मूल्य पर लिया गया था। कुछ मामलों में उच्चतर आईडीवी को लिया गया जहाँ पालिसियाँ आनलाइन जारी की गई थीं।
3. जहाँ तक मूल्यह्रास का संबंध है, इसे वहाँ लागू किया गया जहाँ असाधारण विलंब हुआ था और दावों का निपटान गैर-मानक आधार पर करना चाहिए था।
- प्राधिकरण द्वारा निरीक्षण किये जाने के बाद आईडीवी में कटौती करने की प्रथा बंद की गई है।
IV) मुद्दों की जाँच
- पूर्व के प्रशुल्क (टैरिफ) के उपबंध बीमाकर्ता को टीएल/ सीटीएल दावों के संबंध में आईडीवी से किसी राशि की मनमाने ढंग से कटौती करने के लिए हकदार नहीं बनाते। यद्यपि बीमाकर्ता ने कहा है कि दावों पर कार्रवाई लागू करने योग्य आधिक्य (एक्सेस) को घटाकर आईडीवी के आधार पर की जाती है जब तक कि बीमित की ओर से लापरवाही / उच्चतर आईडीवी की घोषणा जैसे कारण न हों, तथापि कुछ मामलों में इसके लिए अभिलेखों में कोई प्रमाण नहीं है। उनका प्रस्तुतीकरण कि सहमति का उद्देश्य दावा राशि में कटौती करना नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करना कि बीमाकृत पालिसी की शर्तों के अनुसार निपटान से बीमित संतुष्ट है, सही नहीं प्रतीत होता। मैं सहमत नहीं हूँ कि केवल दावेदारों से एक सहमति पत्र प्राप्त करना उन कारणों से जो अभिलेख में नहीं हैं, आईडीवी को कम करने के लिए ऐसी सहमति की विधिमान्यता को ताक पर रखकर बीमाकृत के संतोष को दर्शायेगा।
- यह निर्विवाद है कि यदि पालिसीधारक ने किसी महत्वपूर्ण शर्त को भंग किया हो अथवा अंशदायी उपेक्षा का दोषी हो, तो वह ऐसे प्रत्येक भंग अथवा अंशदायी उपेक्षा की गंभीरता के आधार पर संपूर्ण दावे का हकदार नहीं हो सकता। स्वतः कटौती करना गलत नहीं हो सकता, यदि वह पालिसी जारी करते समय पालिसीधारक को विधिवत् सूचित किये गये विधिमान्य कारणों से हो। यदि कटौती ऊपर उल्लिखित रूप में विधिमान्य कारणों से की गई हो, तो ऐसी कटौतियों को आईडीवी (जोकि बीमित राशि है) की कटौती के रूप में नहीं माना जा सकता। केवल इस कारण से कि एक बीमित राशि है, इसका अर्थ यह नहीं हो सकता कि सभी परिस्थितियों के अंतर्गत, हानि के लिए कारणभूत पालिसीधारक की अंशदायी उपेक्षा अथवा महत्वपूर्ण शर्तों के भंग का विचार किये बिना बीमाकृत संपूर्ण राशि का अवश्य भुगतान किया जाना चाहिए। तथापि, नैसर्गिक न्याय का सिद्धांत का तकाजा होगा कि की गई कटौतियों का तर्काधार और इसके लिए कारण दावेदार को सूचित किये जाएँ। निरीक्षण अभिलेखों में उद्धृत मामलों में मैं यह जाँच करने के लिए अग्रसर हो रहा हूँ कि उपर्युक्त सिद्धांत का पालन किया गया है अथवा नहीं।
- जाँच के लिए नमूना मामले लिये गये हैं (विवरण दावा अभिलेखों के अनुसार)
दावा सं. |
कटौती की गई राशि % में (देय दावे की तुलना में) |
दावा अभिलेखों से टिप्पणियाँ |
नमूना 1 |
6.5% |
सूचना देने में विलंब |
नमूना 2 |
10.1% |
एक चाबी प्रस्तुत नहीं की गई है |
नमूना 3
|
10.1% |
अन्वेषक की रिपोर्ट में कहा गया हैः “तथापि बीमाकृत के साथ हमने उपर्युक्त वाहन के आईडीवी के संबंध में बातचीत की… अतः बीमाकर्ता की देयता में …….. कम करने में सफल हुए हैं” कटौती के लिए दावा संवीक्षा पत्रक में कारण दर्ज नहीं किये गये हैं। |
नमूना 4 |
7.7% |
शून्य |
नमूना 5 |
10.7% |
शून्य |
नमूना 6 |
10.0% |
अन्वेषक की रिपोर्ट में कहा गया हैः “तथापि बीमाकृत के साथ हमने उपर्युक्त वाहन के आईडीवी के संबंध में बातचीत की……. अतः हम बीमाकर्ता की देयता में…… कम करने में सफल हुए हैं” कटौती के लिए दावा संवीक्षा पत्रक में कारण दर्ज नहीं किये गये हैं। |
नमूना 7 |
11.2% |
अन्वेषक की रिपोर्ट में कहा गया हैः “….. वाहन के लिए आईडीवी एक उच्चतर स्तर पर लिया गया है।” |
नमूना 8 |
10.1% |
सूचना देने में विलंब |
नमूना 9 |
25.0%
|
प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) बीमित वाहन की चोरी से अगले दिन दायर की गई है – बीमाकर्ता को विलंब से सूचना दी गई है – अवमानक आधार पर निपटान के लिए सिफारिश की जाती है |
नमूना 10 |
12.4% |
अन्वेषक की रिपोर्ट में कहा गया हैः “तथापि हमने बीमाकृत के साथ उपर्युक्त वाहन के आईडीवी के संबध में बातचीत की है……. अतः हम बीमाकर्ता की देयता में ……. कम करने में सफल हुए हैं” कटौती के लिए कारण दावा संवीक्षा पत्रक में दर्ज नहीं किये गये हैं। |
कुछ नमूना दावा अभिलेखों की जाँच करने पर यह समझा जाता है कि बातचीत के द्वारा कुछ राशि की बचत की गई है। यह गुण-दोष के आधार पर दावे का निपटान करने के बजाय केवल धनराशि को बचाने के आशय को ही दर्शाता है। बीमाकर्ता ने दावा राशि में कटौती के लिए कारण बीमाकृत की ओर से लापरवाही / उच्चतर आईडीवी की घोषणा आदि की वजह से अवमानक दावों के रूप में परिणत होनेवाले पालिसी शर्तों के उल्लंघन को बताया है। तथापि, दावे पर कार्रवाई करते समय दावा नोट में इस आशय के केवल कुछ ही टिप्पण हैं। यह मानते हुए भी कि निपटान में गुण है, कटौती के लिए कारण आईआरडीए (पालिसीधारकों के हितों का संरक्षण) विनियम, 2002 के विनियम 9(5) के अनुसार पालिसीधारक को स्पष्ट रूप से दर्शाये जाने चाहिए थे।
(V) निष्कर्ष
आईएमटी 2002 का जीआर 8 (जैसा कि आरोप 1 में वर्णित है) पालिसी अवधि के प्रचलन के दौरान आईडीवी के व्यवहार से संबंधित है। आरोप 2 में उल्लिखित परिपत्र पूर्व के प्रशुल्क (टैरिफ) के विभिन्न उपबंधों (जीआर 8 सहित) को दोहराते हैं।
उपर्युक्त तथ्यों का विश्लेषण दर्शाता है कि संबंधित उपबंधों (अखिल भारतीय मोटर प्रशुल्क, 2002 का सामान्य विनियम 8) और ऊपर आरोप सं. 2 के अंतर्गत निर्दिष्ट संबंधित दिशानिर्देशों के उपबंधों का, दावों से की गई कटौतियों के संबंध में अपारदर्शी होने की सीमा तक उल्लंघन किया गया है। बीमाकर्ता ने दावा किया है कि दावेदारों के संबंध में उनके अनुपालनों में कुछ कमी पाई गई है जैसा कि ऊपर दिये गये नमूनों में दर्शाया गया है। तथापि, यह दावेदारों के साथ उद्दिष्ट समझौता वार्ताओँ और `समझौता की गई राशियों‘ की गणना करने के आधार पर दावों से राशियों की कटौती करने के लिए बीमाकर्ता को कोई आधार प्रदान नहीं करता। वास्तव में, यह देखा गया है कि इन तथाकथित समझौता वार्ताओं की प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव रहा है क्योंकि सामान्य तौर पर, की गई कटौतियों का कोई विवरण दावेदारों सूचित नहीं किया गया है। गैर-मानक दावा बनने के बारे में कोई पारदर्शिता नहीं है तथा विभिन्न मामलों में प्रतीत होता है कि आईडीवी से की गई राशियों की कटौतियाँ मनमाने ढंग से की गई हैं। तथापि, उक्त मामले, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, दावों के लिए निर्धारित क्रियाविधियों के संबंध में कुछ अंश तक दावेदारों की ओर से कमी के उदाहरण दर्शाते हैं।
(VI) निर्णय
उपर्युक्त सभी कारकों पर विचार करने के बाद मेरी राय है कि कुल हानि / प्रलक्षित कुल हानि के दावों से संबंधित आरोप 1 और 2 सिद्ध हुए हैं तथा ऊपर दिये गये नमूने इसके लिए प्रमाण हैं। इसी के साथ, दावेदारों के द्वारा अनुपालन में कुछ कमियाँ भी पाई गई हैं। इन्हें ध्यान में रखते हुए तथा बीमा अधिनियम, 1938 (समय-समय पर यथासंशोधित) की धारा 102 (बी) के उपबंधों के अनुसार प्राधिकरण में निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए, मैं इसके द्वारा निर्णय करता हूँ कि बीमाकर्ता पर 5 लाख रुपये की राशि का अर्थ-दंड लगाया जाए।
5,00,000 रुपये (पाँच लाख रुपये) का उक्त अर्थ-दंड बीमाकर्ता द्वारा इस आदेश की प्राप्ति की तारीख से 15 दिन की अवधि के अंदर शेयरधारकों के खाते में नामे डालकर एनईएफटी / आरटीजीएस (जिसका विवरण अलग से सूचित किया जाएगा) के माध्यम से विप्रेषित किया जाएगा। बीमाकर्ता द्वारा विप्रेषण की सूचना श्रीमती यज्ञप्रिया भरत, मुख्य महाप्रबंधक (गैर-जीवन), आईआरडीएआई, सर्वे सं. 115/1, फाइनैंशियल डिस्ट्रिक्ट, नानकरामगूडा, हैदराबाद-500032 को भेजी जाए।
यदि बीमाकर्ता इस आदेश में निहित उपर्युक्त निर्णय से असंतुष्ट है, तो बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 110 के अनुसार प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (एसएटी) को एक अपील प्रस्तुत की जा सकती है।
(पी. जे. जोसेफ)
सदस्य (गैर-जीवन)