1. भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण(इसमें इसके बाद`प्राधिकरण~के रूप में उल्लिखित)ने बीमा अधिनियम,1938 की धारा3 के अनुसार भारत में जीवन बीमा का व्यवसाय करने के लिए6 फरवरी2004 को सहारा इंडिया लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लि.(इसमें इसके बाद`बीमाकर्ता~के रूप में उल्लिखित)को सं.127 से युक्त पंजीकरण प्रमाणपत्र जारी किया। उसके अनुसार बीमाकर्ता पंजीकरण प्रमाणपत्र की शर्तों के अधीन है और उससे अपेक्षित है कि वह बीमा अधिनियम,1938 (इसमें इसके बाद`अधिनियम~के रूप में उल्लिखित),बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम,1999 के उपबंधों तथा प्राधिकरण द्वारा परिपत्रों और/या दिशानिर्देशों के रूप में समय-समय पर जारी किये गये अन्य निर्देशों का पालन करे।
2. प्रत्येक बीमाकर्ता से अपेक्षित है कि वह अधिनियम की धारा11 में उल्लिखित लेखा-परीक्षित खाते और विवरण उनकी संबंधित अवधि की समाप्ति से छह महीने के अंदर प्राधिकरण को विवरणियों के रूप में प्रस्तुत करे। `बीमाकर्ता~के द्वारा वर्ष2014-15 के लिए इस प्रकार दाखिल किये गये लेखा-परीक्षित वित्तीय विवरणों की समीक्षा परोक्ष निगरानी प्रक्रिया के भाग के रूप में की गई। 31 मार्च2015 को समाप्त वर्ष के लिए वित्तीय विवरणों की समीक्षा करने पर बीमाकर्ता के अभिशासन पहलुओं,ह्रासमान व्यवसाय,और वित्तीय स्थिति के संबंध में गंभीर सरोकार पाये गये,संबंधित उद्धरण निम्नानुसार हैं:
i. अभिशासन पहलूः बोर्ड और निवेश समिति के अध्यक्ष मार्च2015 को समाप्त चार वर्षों के दौरान बोर्ड और निवेश समिति की किसी भी बैठक में उपस्थित नहीं रहे थे। बीमाकर्ता के विभिन्न कार्यकलापों पर बोर्ड के पर्यवेक्षण के संबंध में यह चिंता का कारण है।
ii. यह भी पाया गया कि व्यवसाय के निष्पादन में निरंतर कमी रही है जैसी कि बीमाकर्ता के वर्षानुवर्ष घटते हुए नय#2351;े व्यवसाय और घटते हुए नवीकरण व्यवसाय से देखी जा सकती है। इस संबंध में बीमाकर्ता को सूचित किया गया था कि वह तीन वर्षों के लिए(2016-17 से2018-2019 तक के लिए)एक विस्तृत व्यवसाय योजना प्रस्तुत करे जिसमें प्राधिकरण द्वारा बताई गई चिंताओं का समाधान करने तथा बीमाकर्ता को एक सुदृढ़ आधार पर लाने के लिए सुनियोजित कार्य की प्रक्रिया का विवरण दिया जाए। उपर्युक्त योजना का कंपनी के बोर्ड द्वारा विधिवत् अनुमोदित किया जाना आवश्यक है।
iii. 31 मार्च2014 तक पिछले वित्तीय वर्षों में उपर्युक्त लेखा-शीर्षों के अंतर्गत पाई गई नियमित प्रवृत्तियों की तुलना में उपर्युक्त वर्ष के दौरान चालू आस्तियों के अंतर्गत कुछ व्यावसायिक मदों में उल्लेखनीय वृद्धि पाई गई,जोकि निम्नानुसार थीः
क. प्रतिभूति और अन्य जमाराशि0.10 करोड़ रुपये से71.34 करोड़ रुपये तक
ख. फुटकर वसूली-योग्य राशियाँ1.81 करोड़ रुपये से6.24 करोड़ रुपये तक
बीमाकर्ता को ऐसे उल्लेखनीय परिवर्तनों के लिए कारण स्पष्ट करने के लिए दिनांक26 नवंबर2015 के पत्र संदर्भ113.4/4/एफएण्डए-लाइफ/एसएलआईसी एआरए/118/2014-15द्वारा सूचित किया गया(अनुबंधI पर प्रतिलिपि संलग्न)।पत्र संदर्भ113.4/4/एफएण्डए-लाइफ/एसएलआईसी एआरए/187/2014-15दिनांक16 फरवरी2016 द्वारा एक स्मरण-पत्र जारी किया गया। बीमाकर्ता ने पत्र संदर्भ एसआईएलआईसीएल/सीएस/एमएआर-16/44/66749 दिनांक29 मार्च2016 के द्वारा प्रत्युत्तर दिया।
बीमाकर्ता के प्रत्युत्तर(अनुबंधII के रूप में प्रति संलग्न)की समीक्षा करने पर यह पाया गया कि उठाई गई चिंताओं का समाधान संतोषजनक रूप में नहीं किया गया था जैसा कि प्रत्युत्तर के संबंधित उद्धरणों द्वारा निम्नानुसार दर्शाया गयाः
i. "…..कंपनी यह उल्लेख करना चाहेगी कि अध्यक्ष महोदय की अनुपस्थिति ने एसआईएलआईसीएल के सभी कार्यकलापों पर बोर्ड के निर्णयों को कभी प्रभावित नहीं किया। बोर्ड और निवेश समिति के सभी अन्य सदस्य बैठकों में उपस्थित रहे तथा सभी दायित्वों को पूरा किया। तथापि,बोर्ड और निवेश समिति के बैठकों की कार्यवाही के बारे में उन्हें सूचित किया गया और अवगत रखा गया।
ii. ……..हम व्यवसाय की योजना आगामी बोर्ड बैठक में अनुमोदित कराने के बाद शीघ्र ही अधिक से अधिक15 अप्रैल2016 तक प्रस्तुत करनेवाले हैं।
iii. हम नये कार्यालय खोलने के द्वारा अपने व्यवसाय का विस्तार करने की प्रक्रिया में हैं। हमने सारे भारत में646 कार्यालय खोलने के लिए71.25 करोड़ रुपये की प्रतिभूति जमा दी है।"
3. बीमाकर्ता ने दिये गये निर्देश के अनुसार व्यवसाय की योजना दाखिल नहीं की थी। इसके अलावा,बीमाकर्ता के प्रत्युत्तर चिंताओं का संतोषजनक रूप से समाधान नहीं करते,क्योंकि बीमाकर्ता ने दावा किया था कि चालू आस्ति(प्रतिभूति जमा)में वृद्धि अखिल भारत में कार्यालय खोलने के लिए है,परंतु आईआरडीएआई ने इसके लिए अनुमोदन प्रदान नहीं किया था।
इस स्थिति के होते हुए,बीमाकर्ता को पत्र संदर्भ113.4/4/एफएण्डए-लाइफ/एसएलआईसी एआरए/21/2014-15दिनांक18 मई 2016 (प्रतिलिपि अनुबंधIII पर संलग्न)द्वारा अतिरिक्त स्पष्टीकरण/निविष्टियाँ प्रस्तुत करने के लिए सूचित किया गया। बीमाकर्ता की प्रतिक्रिया31 मई 2016 तक प्रस्तुत करना अपेक्षित था।
4. चूँकि बीमाकर्ता ने उपर्युक्त पत्र का प्रत्युत्तर नहीं दिया,अतः स्मरण-पत्र सं.1 पत्र संदर्भ113.4/4/एफएण्डए-लाइफ/एसएलआईसी एआरए/105/2014-15दिनांक26 सितंबर2016 द्वारा भेजा गया। एक दूसरा स्मरण-पत्र दिनांक4 जनवरी2017 के ई-मेल द्वारा प्रेषित किया गया।
5. गंभीर विषयों पर प्रत्युत्तर देने के लिए इतने अवसर होने के बावजूद,बीमाकर्ता ने दिनांक18 मई 2016 के पत्र द्वारा उठाये गये प्रश्नों का उत्तर न देने के विकल्प का चयन किया। 31 मार्च2015 को समाप्त वर्ष के लिए वित्तीय विवरणों से पाई गई चिंताओं के गंभीर स्वरूप को ध्यान में रखते हुए तथा दस महीने से अधिक समय व्यतीत होने के बाद भी बीमाकर्ता द्वारा उत्तर नहीं दिये जाने के कारण पत्र संदर्भ113.4/5/एसएलआईसी-एआरए/एफएण्डए-लाइफ/228/2014-15दिनांक9 मार्च2017 द्वारा एक कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। बीमाकर्ता ने उक्त कारण बताओ नोटिस के लिए भी प्रत्युत्तर नहीं दिया और न ही उसने इस विषय में किसी वैयक्तिक सुनवाई की अपेक्षा की। चूँकि बीमाकर्ता ने कारण बताओ नोटिस के लिए प्रत्युत्तर नहीं दिया और साथ ही